असमिया सिनेमा के प्रथम फ़िल्मकार ज्योतिप्रसाद अग्रवाल से लेकर जाहनु बरुआ और रीमा दास तक की फ़िल्मों का कलात्मक पक्ष अति महत्वपूर्ण रहा है। व्यवसाय के नज़रिए से असमिया फ़िल्में भले ही फ़्लॉप रही हो लेकिन कलात्मकता और प्रयोगों की कमी नहीं दिखती। असम सरकार द्वारा फ़िल्मों के संरक्षण तथा विकास पर ज़रूरी ध्यान ना दिया जाना भी चिंताजनक रहा है। अब जबकि असमिया सिनेमा असम से बाहर के दर्शकों के लिए उपलब्ध हो रहा है और दूसरी तरफ़ पुरस्कारों की झड़ी भी लगातार लग रही है, ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि असमिया सिनेमा का इतिहास कैसा था और यहाँ तक पहुँचने में कितने पड़ाव और यात्रा-संघर्ष रहे हैं?
पूर्वोत्तर राज्यों की सिनेमा संस्कृति
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Published on: 14 September 2019
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मनीष कुमार जैसल (Manish Kumar Jaisal)
मनीष कुमार जैसल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस मुंबई, सहपीडिया यूनेस्को, तथा नेहरू लाइब्रेरी और म्यूजियम के लिए रिसर्च फ़ेलो है| उन्होंने फिल्म अध्ययन में पीएच.डी. करी है| कई मान्य समाचार पत्र तथा न्यूज पोर्टल में उनके फिल्म समीक्षा तथा समसामयिकआलेख प्रकाशित हुए हैं|